भारत माँ की सेवा भाव मेरे मन मस्तिष्क में बचपन से था। यथा संभव जो भी मिला, हम उसके साथ हो लिए। राम के मंदिर गए। कृष्ण के मंदिर गए। शिव के मंदिर गए। गुरुद्वारा गए। चर्च गए। अपने धर्म के प्रति भी आस्थावान रहा। आनंदजी सेवा कुञ्ज ले गए, वहां चले गए। दयानन्द मिश्रजी डोरहर के पास शिव मंदिर ले गए वहां नवोदय मिशन का सेण्टर शुरू हो गया। टी एन सिंह सिरसोती ले गए वहां सेवा कार्य शुरू हो गया। कोई आर्ट ऑफ़ लिविंग में ले गए वहां से ज्ञान ले लिया। कोई इस्कॉन ले गया, वहां भक्ति ले लिया। वैसे भी बाल स्वरुप कृष्ण से मैं काफी एकात्मकता महसूस करता हूँ। कुछ लोग रामचंद्र मिशन से जोड़ लिए तो कुछ ब्रह्मा कुमारी से। कुछ लोग पूछते भी हैं, आप सबके साथ कैसे सामंजय बना लेते है। मैं बेबाक जवाब दे देता था, स्वयंसेवक हूँ, जो भी देश सेवा , मानव सेवा या ईश सेवा में लगे हैं उनके साथ खड़ा हो जाता हूँ। किसी को ना नहीं कह पाता हूँ। इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ता है। लेकिन अपना स्वभाव है, जो भी प्यार से मिला, हम उसी के हो लिए। वैसे भी सेवा कुञ्ज आश्रम के लिए चंदा मांगने की वजह से लोगो से पहले ही जान-पहचान हो जाती थी और प्रेम भाव बन जाता था। इसलिए जब वे भी अपनी पूजा आराधन में बुलाते, सम्बन्धवश और उसके बारे में जानने के उत्सुकतावश शामिल होते थे।
आश्रम में अघोर संप्रदाय को समझा तो अवधूत भगवान् राम के भक्त हो गए। बी एल स्वामी सर ने बुलाया तो ट्रेनिंग सेण्टर में नवोदय मिशन चलने लगा। आनंदजी के प्रेरणा से सेवा कुञ्ज के लिए चंदा मांगते थे, तो कुछ लोग कहते थे, पास में सेवा कार्य के लिए बोलोगे तो देंगे। पास में हमलोग खुद पढाते थे, तो पैसे की जरूरत नहीं होती थी। मेरे एक मित्र ने उपाय बनाया तो, वे मेरे कार्यों को भी उपाय का हिस्सा बना लिया। मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ा। बच्चों को लाभ ही मिलेगा। फिर जब प्रयास को पूरी तरह से उपाय में मर्ज करने के लिए सोचा तो साथियों ने एक अलग संस्था बनाने की बात कहीं। नवोदय मिशन बन गया। दिल नहीं माना। जिस सेण्टर को उपाय के लिए बोल दिया था उसको उपाय को ही देने के लिए मैंने उपाय के लिए अलग से टीम बनाकर देने की सलाह दिया। शायद उपाय बहुत आगे निकल चूका था। इसलिए केवल नवोदय मिशन रह गया। कुछ हमारे प्रिय लोग हमें अघोरी कहा तो उसी समय वर्तिका महिला मंडल सहयोग के लिए आगे आयी। कम्प्यूटर सेण्टर शुरू हुआ।
फिर श्रीमाताजी का सन्देश आया और बच्चों के विकास हेतु सहज योग की शुरुआत किया। पहली बार भगवान् का प्रसाद मुझे मिल रहा था, इसलिए मैं सहर्ष आदिशक्ति श्रीमाताजी की आराधना करने लगा। अपनी आतंरिक ऊर्जा के पुनर्निर्माण के लिए भक्ति मार्ग को अपनाना था, माँ स्वयं आयी तो उनका सम्मान करना और आत्म-साक्षात्कार ग्रहण करने मैंने देर नहीं की।
सबसे प्रेम है। सभी कार्य अच्छे से बढे। कई लोगों ने बोला सीएसआर की मदद मिलनी चाहिए। हम लोग जो कर रहे हैं वह भी तो सीएसआर ही हैं। कुछ लोग कहते हैं इस आश्रम में हैं , उस आश्रम को छोड़ दिए क्या। उन्हें मालूम ही नहीं कि हमलोग दोनों आश्रम में सदा से रहे है। इस आश्रम के कार्य से ही कार्यकर्ता मिलते रहे और वे ही उस आश्रम तक जाते रहे। लेकिन अपने कुछ प्रिय जन इस आश्रम को एक बार आकर देख लेते। एक बार गाँधी धाम घूम लेते। ऐसी अपेक्षा सदा बनी रही। बोलूंगा तो वे जरूर आएंगे, लेकिन वे खुद आये ऐसी एक कल्पना है। भक्ति, देश, बच्चों का कल्याण ये ज्यादा मेरे लिए मायने रखती है, न की सेवा कुञ्ज आश्रम, ब्रह्मनिष्ठ आश्रम, उपाय या नवोदय मिशन। लेकिन कुछ समय अपने लिए निकालना एवं ईश्वर साधना से अपनी आतंरिक ऊर्जा का निर्माण भी अतिआवश्यक है और उसके लिए समय निकालना भी। सब कुछ सहज भाव से होगा। उचित समय पर होगा। बस आप ध्यान लगाते जाइये और थोड़ा ध्यान रखिये। समय के पन्ने में क्या-क्या लिखा है, उसे निर्विकार भाव से देखिये और आनंदित रहिये।
अपना विशेष मित्र विकास सुटिया का त्याग और संत मार्ग पर बढ़ रहे कदम सदा ही सेवा मार्ग पर बढ़ते रहने की प्रेरणा देता रहता है । सहज ध्यान योग से वह विगत बारह साल से साधना रत है। जब वह एनटीपीसी में था, तो सेवा कुंज आश्रम के एक बालक को अपने खर्च से बीएड करवाया और मार्गदर्शन भी दिया था। उसके साधना से प्राप्त ज्ञान आगे भी मिलता रहेगा।
समाज कल्याण राज्य मंत्री का मीरा लर्निंग सेण्टर सिरसोती आगमन हुआ। सबके लिए एक आशा बनी, अब कार्य आगे बढ़ेगा। बड़े-बड़े अधिकारी भी आते रहे हैं, लेकिन इंतजार ख़त्म नहीं हुआ की थोड़ा बहुत भी उनके नाम से हो जाय। सेवा कुञ्ज आश्रम के एक प्रमुख कार्यकर्ता होने के नाते, सबको मुझसे भी काफी अपेक्षा थी। चार-पांच कमरे बनवाना कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन बिना ऊपर के लोगो के आशीर्वाद व थोड़ा ध्यान के बिना यह कार्य भी संभव नहीं हैं। मैं अपने ही लोगो से आग्रह नहीं कर सकता।
इसीलिए बच्चों को आशा के दीप जलाये रखने को कहता हूँ। कोई तो देश-प्रेमी का ध्यान यहाँ आएगा। कोई तो शिव भक्त यहाँ आएगा। जो लोग देंगे, उनके प्रति भक्ति तो निश्चित रूप से बनेगी। श्रीमाताजी के आशीर्वाद से कंप्यूटर सेण्टर बना, भोजन पानी की व्यवस्था हुई, तो बच्चे भी श्रद्धा भाव से गणेश अथर्वशीर्ष गाकर आदिशक्ति का ध्यान करने लगे और इससे उनका मानसिक संतुलन बनाने में भी सहयोग मिल रहा है। ईश्वर प्रेरणा से उमेश श्रीवास्तव सर मीरा लर्निंग सेण्टर के लिए अपने पिता के नाम पर कमरा बनवा दिए और वे सिरसोती ग्राम के लिए पूजनीय हो गए। यह ईश्वरीय कार्य है। भारत माता के सब लाडले हैं और यहाँ ईश्वरीय प्रेरणा से उत्तम कार्य होता रहेगा। ईश्वर आराधना में अपना भी समर्पण करें यह ही उत्तम अवसर है। ईश कार्य की नीव तैयार हो रही है और आपका समर्पण व्यर्थ नहीं जायेगा। इसमें आपका और समाज का भला निश्चित है। सभी कार्य यथा समय सहज भाव से हो जायेगा। इसलिए आप निश्चिन्त भाव से सेवा और भक्ति में लगे रहिये।
अपनी आतंरिक ऊर्जा के पुनर्जागरण के लिए मैं यथासंभव साप्ताहिक सामूहिक श्रीमाताजी की पूजा और आराधना में शामिल होता हूँ। बच्चों को प्रेरणा देने के लिए मुझे स्वयं भी उस कार्य को करना पड़ेगा, यह भाव भी मुझे प्रत्येक सप्ताह सामूहिक पूजा में ले जाता है। सफाईकर्मियों के साथ श्रीमाताजी के आरती भजन करने से एक प्रकार से सामाजिक कार्य में भी शामिल होने का अवसर का बोध होता है। श्रीमाताजी के छत्रछाया में शिवनगर सिरसोती का कल्याण निश्चित है।
